Sunday, January 20, 2013

तू मुझको पनाह दे - नूतन

 

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    बेगुनाही की मेरी न मुझको सजा दे,
   खफा मुझसे तू क्यूँ, ए जिंदगी बता दे|
   जिन्दा बमुश्किल चाक- ए- जिगर संग
   हलाहल पिला के तू कुछ तो वफ़ा दे |
 
   बहार आ न पाई, खिजां ढल गयी है,
   खिली भी नहीं थी कि शाख गिर गयी है|
   न मसल इस कदर तू कदम रख संभल के
   उठा के कली को अब घर को सजा दे |

   वो दो दिन नहीं थे वो जीवन मेरा था
   रंगे बहार थी कि गुल खिल गए थे|
   किधर से उठा था तुफां जिल्लतों का
   जो बुझ के मिटा है वो चिराग-ए-यार मैं था|

    चाँद बादलों में, शबे गम ढल रही है
   आँखों में लहू की नदिया पिघल रही है|   
   पश्चिम में डूबा पर अब सहर हो रही है,
   दीदार यार दे कर तू अब  नूर-ए-जहां दे|
   
 
   बेगुनाही की मेरी न मुझको सजा दे,
   खफा मुझसे तू क्यूँ, ए जिंदगी बता दे
 
   दूरी तेरी न सही जा रही है 
   हार जाएगी मौत गर तू मुझको पनाह दे|
   तू मुझको पनाह दे, तू मुझको पनाह दे|

                                 ……………………… nutan ~~  … 11:57 pm 19=01= 2013
     

  

17 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना।।।

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  2. जीवन में रमना चाहा था,
    हमने बस इतना ही माँगा।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार आदरेया ||

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  4. I stumbled while wandering and fell down here to find my self in AMRITRAS.

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  5. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  6. बेगुनाही की मेरी ना मुझको सजा दे.

    कोमल संवेदशील अहसास और उसकी सुंदर अभिव्यक्ति.

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  7. लाजवाब.....दिल के तूफान को अक्षरों से सजा दिया।

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  8. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  9. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  10. वाह!
    आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  11. उम्दा पेशकारी ......

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  12. बहुत सुन्दर!!

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  13. सुंदर प्रस्तुति.

    आपको गणतंत्र दिवस पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें.

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